चंचल मन में प्रेम राग पर एक अलग सा सुर बहता है.....
प्रेम ओस की बूंदों जैसे .....दिल को आज भिगो बैठा है.....
अव्यक्त भाव के..अदृश्य शहर में प्रेम व्यंग की प्रेम पहेली...
आज भी वो पूछे बैठा है....
छिड़ा द्वंद है....नाज़ुक मन में...क्यों आज भी वो रुठा बैठा है.....
नया नहीं कुछ इस बही हवा में..फिर भी इस निश्छल नदिया में...
कोई तूफान छिपा बैठा है.......
साथ भले न साथ रहे अब....सहृदय के इस अम्बर में....
प्रेम परिंदा उड़ बैठा है........
अनदेखी....अनसुनी कहानी...प्रेम वसंत के इस मौसम में....
आज भी ये फिर कह बैठा है.........
प्रेम ओस की बूंदों जैसे .....दिल को आज भिगो बैठा है.....
अव्यक्त भाव के..अदृश्य शहर में प्रेम व्यंग की प्रेम पहेली...
आज भी वो पूछे बैठा है....
छिड़ा द्वंद है....नाज़ुक मन में...क्यों आज भी वो रुठा बैठा है.....
नया नहीं कुछ इस बही हवा में..फिर भी इस निश्छल नदिया में...
कोई तूफान छिपा बैठा है.......
साथ भले न साथ रहे अब....सहृदय के इस अम्बर में....
प्रेम परिंदा उड़ बैठा है........
अनदेखी....अनसुनी कहानी...प्रेम वसंत के इस मौसम में....
आज भी ये फिर कह बैठा है.........
सब कुछ जानकर भी....क्यूँ वो अनजान बन बैठा है...!
ReplyDeleteप्रेम ग्रंथ को सामने रखकर भी... क्यूँ मुख मोड़कर बैठा है...!