तुम उलझी हो मुझमें रेशम के धागे के जैसी....



तुम उलझी हो मुझमें रंगीन रेशम के धागे के जैसी....
रेशम.. धागों की सबसे उम्दा किस्म.... किसी भी धागे से उलझे और लम्हों में सुलझ जाए..
तुम भी वही रेशमी धागा हो...मैं किस किस्म का धागा हूं..मुझे खबर नहीं
तुम हर रोज मुझसे उलझती हो और खुद ब खुद सुलझ जाती हो..
तुम्हें पता है मेरी फितरत सुलझने की नहीं है......
तुम मुझमें से उलझ कर ऐसे निकलती हो....कि कोई गांठ न पड़े
लोगों के स्वभाव भी अलग-अलग रंगों के होते हैं...
अलग-अलग पसंद न-पसंद के लोग भी उन रंगों की तरह एक-दूसरे में मिलकर कोई तीसरा रंग बनाते हैं...
इश्क का रंग....मेरा और तुम्हारा रंग.......
लोग कहते हैं इश्क का रंग लाल होता है....पर शायद ये सफेद होता होगा...
जो सारे रंगों को खुद में जज्ब कर लेता है.....
तुमने बचपन में स्कूल में लाइट के बारे में पढा था क्या...

जिसमें लिखा था कि रंगों का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है.... 
यानि दुनिया में सब रंग झूठे हैं...
कोई हरा...कोई लाल...कोई नीला...कोई पीला......सब झूठ
ये सारे रंग झूठे हैं.....किसी रंग का अस्तित्तव नहीं है...
इश्क का भी कोई रंग नहीं है... वो रौशनी की तरह है.....जब जिंदगी में आता है तो सब रंगीन हो जाता है...
जहां ये रौशनी कम होती है....या कहें इश्क कम होता है... तो जिंदगी के रंग फीके हो जाते हैं...
और इश्क खत्म होने पर सारे रंग खत्म.....घुप्प अंधेरा बचता है...
मेर-तुम्हारे बीच में उन्स की रौशनी  है.... तभी दुनिया रंगीन है हमारी....
तुम रेशम के रंग की और....मेरा कोई रंग नहीं......


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