राघव की बरसात



एक...बार फिर शोर हो गया....जी हां शोर...
 सबके सामने एक चोर- चोर हो गया....
लेकिन मामला गंभीर है..थोड़ी समझ लगाकर समझिएगा....
क्योंकि ये चोर बरसात के  मौसम में बेमौसम बरसात का मारा है...
बरसात पुरानी थी...पर बरस बरसात में गयी....
पर पुरानी बरसात जब बरसती है तो पूरे ज़ोर शोर के साथ
पूरे लब्बोलुबाव के साथ...जन्मदिन पर इस चोर की चोरी
भी पकड़ी गयी.....
हल्ला हो रहा है.....कि राघव चोर है राघव चोर है....
और राघव के साथियों ने भी भीगते राघव से खुद को बचाया
और फिर बदनामी के ओलों से खुद को बचाना तो पड़ेगा ही...
इस बार की चोरी अलग प्रकार की है...
क्योंकि ये चोरी राघव की है.....राघव वही जो
कभी गज़ले गुनगुनाते...शायराना अंदाज़ में
अर्थतंत्र की बातें करता था....
पर आज तो खुद को इस चोरी के नाकाबिल
बता रहा है.....कह रहा है मेरी उम्र हो चली है...
मैं इतनी गंभीर चोरी के लायक नहीं हूं...छोटी मोटी चोरी की सज़ी दे दीजिए
हो सकता है कि ऐसी चोरी जाने-अनजाने हो जाया करती है....
पर चोरी हो गयी है...सुबूत भी हैं..गवाह भी
अब आपकी नाकाबिलियत भी  आपको बचा नहीं सकती.....क्या करें
क़ानून को अंधा बताया..और बनाया आप ही ने है...
ख़ैर बरदाश्त कीजिए इस चोरी को.....
क्योंकि इस बरसात से कोई छतरी आपको नहीं बचा सकती....



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