उम्र के पड़ाव यूं ही अंधेर
में जज़्ब हो जाते हैं....
और कश्मकश यूं ही चलती रहती
है.......
कल यूं ही हर बार की तरह
सर्द रात में
गली के किनारे, फुटपाथ के
कोने पर...
सो रहा था बदरंग सा आदमी
कश्मकश में......
शायद ज़िंदगी की गाड़ी का
एक पहिया चलने से इंकार कर रहा है...
या फिर अगले दिन की दौड़ की
तैयारी की कश्मकश
नींद ग़ायब किये हुए
है........
लगता है आज भी भरपेट खाने
का जुगाड़ नहीं हुआ...
अरे हां कल ही की तो बात
है.....
एक बुढ़िया सफेद घने कोहरे
में हॉस्पीटल के चारो ओर चक्कर
लगा रही थी........
शायद उसका बेटा नशे में
गाड़ी की टक्कर से घायल
हो गया.........
कुछ अजीब सा होठों को हल्के
से बुदबुदाकर
बेटे की सलामती की दुआ मांग
रही थी....
या फिर कम्बख़्त उस गाड़ी
वाले को गालियां दे रही
होगी जिसने उसके कलेजे के
टुकड़े को टक्कर
मार दी..........
अजीब सी कश्मकश है मन
में...
कल हां कल की ही तो बात
है...
स्टेशन के पास वाले तिराहे
पर बड़े दाँतों वाला
आदमी अपने मुरझाये चेहरे पर
उदासी लिए क्यूं बैठा था...
कहीं उसका सामान तो चोरी
नहीं हो गया.....
या फिर उसकी सिटी बस लेट
आने से ट्रेन छूट गयी
कितनी बार चीख-चीख कर बस
कन्डक्टर को बोला था
आठ बजे की ट्रेन है...फिर
भी फिल्मी हेयर स्टाइल वाले
बस कन्डक्टर ने ड्राइवर से
कुछ नहीं कहा....
शायद उसके दिमाग़ में भी
ज़्यादा सवारी ढोने की
कश्मकश थी.....
कल उसकी भी तो रईस मियाँ अरे
वही जो खान साहब
की बस चलाते हैं से झड़प हो
गयी थी...
बेचारे बुज़ुर्ग हैं फिर भी
कैंची जैसी ज़ुबान चलती है उनकी
कभी-कभी तो इसी तेज़ तर्रार
ज़ुबा की वज़ह से
पान के छींटे मुंह से बाहर
आ जाते हैं....
हां उनके भी दिमाग़ में तो
चलती है
अनकही कश्मकश........
नीले रंग का मुंह पर कपड़ा
बाँधे ....आँखों को
चारो ओर दौड़ाती, तेज़
कदमों से चली जा रही लड़की....
आज कोचिंग बहुत देर तक चली
है...शायद
या फिर शाम के अँधेरे से
खुद की हिफाज़त करने के
लिए तेज़ क़दमों से चल रही
है...
आठ बजे से पहले हॉस्टल
पहुँचना होगा...
वरना हर बार की तरह आँखों
पर चश्मा
चढ़ाए वॉर्डन सवाल
करेगी....
तभी तो तेज़ क़दमों के साथ
अंधेरे में ग़ायब हो
गयी वो लड़की.....कोई
कश्मकश होगी अजीब सी...
सही ग़लत के फैसले की या
फिर ज़िंदगी के
किसी पचड़े की कोई
कश्मकश......
(स्वतंत्र अभिव्यक्ति)
हर्षित
बहुुत खुब सराहनिय है ये कश्मकश आपकी.......
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