ज़िंदगी की पहली मुहब्बत

प्रेम दिवस के सुर्ख फूल पर दिल का भंवर मचल बैठा है.
मां के उन भीगे नयनों में, पापा की उस गर्म छुअन में.....
कुछ अदृश्य सा रहता है....
नहीं कहा उनके होठों ने, ना ही मैं वो सुन पाया..
फिर उस अनलिखे हर्फ में....
एक एहसास भरा रहता है...
कभी कमी न हो मुझको कुछ, ना ही मैं कुछ कष्ट सहूँ...
उठे दुआ में उन हाथों में...
कुछ चमत्कार सा होता है...........
मेरी ख़ातिर वक़्त से लड़ते, जीवन की सीढ़ी पर चढ़ते...
उन दोनो के अंतर्मन में....
प्यार भरा कुछ रहता है.............
उस अनन्त से प्रेम नगर में....प्यार भरी उस दिव्य नदी में....
उनके दिल का टुकड़ा रहता है......
(स्वतंत्र अभिव्यक्ति-हर्षित)

Comments