बे- अदब है मुहब्बत

बड़ी बे- अदब है मुहब्बत
बुजुर्ग हो चुके दो जर्जर दरख़्त
भरे बुढ़ापे में एक-दूसरे की बाहों में बाहें डाले
मुहब्बत के असरार जानने में व्यस्त हैं......
बड़े ही जीदार हैं ये दरख़्त, वरना आजकल
इब्तिदाई मुहब्बत के लिए भी अनुमति की
ज़रुरत होती है......
मुझे लगता है बड़े ही अहमक हैं ये...
जो मुहब्बत के नियम और अनुशासन नहीं जानते..
और तो और चाँदनी रात, तपती दोपहर
और ठिठुरती सुबह में भी इनकी उल्फत
कम नहीं होती....
कहीं ये परीज़ाद मुहब्बत की तबिश में तो
ख़ुद को महफूज़ नहीं किये हुए हैं....
लगता है बहुत ही फाँकड़ मुहब्बत है इनकी...
तभी तो ये असासी मुहब्बत की मिसाल की
तरह खड़े हैं........
(स्वतंत्र अभिव्यक्ति- हर्षित)



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