तुम क्या हो

तुम क्या हो....क्या रंगों में इतनी चमक होती है...जितनी तुम्हारे भीतर है.....तुम व्रत करती हो तो लगता है कि तुम्हारे लिए किसी को अन्न जल त्याग देना चाहिए..

कभी तुम्हारे चेहरे में इतना आकर्षण पैदा हो जाता है जैसे रंगों में भांग मिला दी गई है...तुम खींचती हो मेरी रूह को अपनी ओर....

हर दफा..आंखों के कोरों पर जो काजल की रेखा खींच लेती हो ऐसा लगता है किसी नमाज़ी के लिए खुदा ने कलमा लिखा हो.....

शराबी के लिए शराब हो ...नमाजी की नमाज ...उनींदे शख्स का ख्वाब हो ....... तुम और कोई नहीं मेरी मधुशाला हो..... आवारा आशिक...किस्सा- ए-इश्क

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