किस्सा-ए-इश्क ......
तेरे हाथों में बांधा था एक लम्हां मैने...वक्त की धुंध में तुमने खो तो नहीं दिया...
तुम्हें पता है बड़ी भुलक्कड़ हो तुम....कहीं लरज़ते लबों की हंसी लोगों की भीड़ में गायब तो नहीं कर दी
.....उस दिन की वो सुबह याद है.....हां वो एक बात...वही उस दिन वाली बात..
कही दिमाग की जिल्द में स्याह रंग तो नहीं चढ़ा दिया उस पर.....और वो उस दिन बड़ी अकड़ में...बहुत गुस्सा किया था मैने तुम पर... फिर भी तुम मुस्कुरा रही थीं...बिल्कुल बच्चे की तरह..
वो लम्हां कहीं तुमने खो तो नहीं दिया.....
तेरे हाथों में बांधा था एक लम्हां मैने...वक्त की धुंध में तुमने खो तो नहीं दिया...
तुम्हें पता है बड़ी भुलक्कड़ हो तुम....कहीं लरज़ते लबों की हंसी लोगों की भीड़ में गायब तो नहीं कर दी
.....उस दिन की वो सुबह याद है.....हां वो एक बात...वही उस दिन वाली बात..
कही दिमाग की जिल्द में स्याह रंग तो नहीं चढ़ा दिया उस पर.....और वो उस दिन बड़ी अकड़ में...बहुत गुस्सा किया था मैने तुम पर... फिर भी तुम मुस्कुरा रही थीं...बिल्कुल बच्चे की तरह..
वो लम्हां कहीं तुमने खो तो नहीं दिया.....
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