तू मेरी समझ है या समझ से परे....कभी लगता
है अबूझ पहेली.....
गुलमोहर के पेड़ जैसी.....ख्वाबों के रंगों से भरी एक तितली...
जिसको छुए उस रंग की हो जाए....जिसको चाहे उसके ढंग की हो जाए...
तू समझ है मेरी या समझ से परे...रातों में जगे तो ख्वाब हो जाए..
जब लड़ने बैठे तो योद्धा हार जाए...शक्ल ऐसी जिस पर कोई दुनिया हार जाए..
बिल्कुल ऐसी जैसे बरसात में सुर्ख गुलाब खिल जाए..बिन श्रंगार ही किसी को छल जाए...
सजाए रूप तो दुनिया ही बहक जाए..संगीत की रागिनी से बढ. सुरों की सरगम हो जाए..
योगी की तपस्या जैसी..जो ठाने वो कर जाए..दबे पांव आई सुबह के जैसी....
किसी को हंसी दे जाए...किसी की आंखों में नमी दे जाए...तू मेरी समझ है या समझ से परे....
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