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वो बिछड़ के मुझसे उदास है

जादू-मंतर पढ़ा जो उसने, मैं कुछ यूं मदहोश हो गया

तुम लगी मुझे अपने जैसी

क्या तुम्हारी भी देह वैसी ही है..जैसी किसी प्रेमिका की होती है..

जब तुम मुस्कुरा देती हो... ये मगरूर सारा जहां भुला देती हो...

कलम चलती रहे उसी तरह, जैसे चलती हैं सांसें

आसान नहीं है तुम्हें उदास देखना.. रुठना और रूठे रहना

भावों से बंधे ये शब्द मेरे... बहती नावों से हैं...

तुम उलझी हो मुझमें रेशम के धागे के जैसी....