तुम एक नोबेल जैसी
हो... तुम्हें नहीं पता पर ये सच है...
कभी-कभी जब कई दिनों
तक लगातार आप किसी नोबेल को पढ़ने की कोशिश करते हैं तो वो बोरिंग हो जाती है...
लेकिन नहीं पढ़ते तो वो खींचती है आपको अपनी तरफ...
तुम्हारी मुस्कान उस नोबेल का इन्ट्रो है... और तुम्हारा गुस्सा उन बोझिल बीच के हिस्से के जैसा.. जो कई बार बहुत परेशान करता है...
पर ये बोझिल हिस्सा ही अंत को बेहतर बनाता है... जैसे तुम्हारे गुस्से के बाद....का अंत...
जानती हो कुछ नोबेल ऐसे होते हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है.... तुम वही हो...जिसे बार-बार फिर से पूरा पढ़ा जा सके...
इन्हें पढ़ने से आप बेहतर महसूस ही नहीं करते बल्कि हर दम कुछ सीखते हैं... हर शब्द से...नोबल के हर हिस्से से...मायूसी से... खुशी से... और दिल को बहला देने वाली हंसी से...
तुम्हें चाय पसंद नहीं... मेरी चाय के बिना सुबह नहीं होती.......
लिखने बैठा तो गैस पर पानी गर्म करने के लिए रखा था...भूल गया..जब धुआं निकलना शुरू हुआ तो पता चला... कुछ गड़बड़ है...
नोबेल को पढ़ते वक्त भी ऐसा ही कुछ होता है......आप खो जाते हो उसमें कहीं.....तुम हो भी तो मेरा एक प्यारा सा नोबेल.. एक कहानी...एक जिक्र... एक मुस्कान... एक हंसी.... और......और भी बहुत कुछ....
तुम्हारी मुस्कान उस नोबेल का इन्ट्रो है... और तुम्हारा गुस्सा उन बोझिल बीच के हिस्से के जैसा.. जो कई बार बहुत परेशान करता है...
पर ये बोझिल हिस्सा ही अंत को बेहतर बनाता है... जैसे तुम्हारे गुस्से के बाद....का अंत...
जानती हो कुछ नोबेल ऐसे होते हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है.... तुम वही हो...जिसे बार-बार फिर से पूरा पढ़ा जा सके...
इन्हें पढ़ने से आप बेहतर महसूस ही नहीं करते बल्कि हर दम कुछ सीखते हैं... हर शब्द से...नोबल के हर हिस्से से...मायूसी से... खुशी से... और दिल को बहला देने वाली हंसी से...
तुम्हें चाय पसंद नहीं... मेरी चाय के बिना सुबह नहीं होती.......
लिखने बैठा तो गैस पर पानी गर्म करने के लिए रखा था...भूल गया..जब धुआं निकलना शुरू हुआ तो पता चला... कुछ गड़बड़ है...
नोबेल को पढ़ते वक्त भी ऐसा ही कुछ होता है......आप खो जाते हो उसमें कहीं.....तुम हो भी तो मेरा एक प्यारा सा नोबेल.. एक कहानी...एक जिक्र... एक मुस्कान... एक हंसी.... और......और भी बहुत कुछ....
Comments
Post a Comment