ये सिर्फ तुम्हारे साथ होता है, हर किसी के साथ नहीं

ये सिर्फ तुम्हारे साथ होता है, हर किसी के साथ नहीं
तुम्हारी भाषा में तुमसे बात करते वक्त अच्छा लगता है
हमारा शब्दों का रिश्ता है न, उन्हें अपनाने में अलग सा सुकून है
ये बिल्कुल वैसे है जैसे समंदर के बीच-बीच में होते हैं पड़ाव
जहां रुका जाता है ठहरा जाता है और खुद को भुलाया जाता है
तुम्हारे साथ मैं बिल्कुल वैसा ही महसूस करता हूं


जब हम किताबों के साथ होते हैं तो हमारे साथ बिल्कुल वैसा ही होता
जैसा तुम्हारे साथ आकर, कुछ कहकर कुछ सुनकर होता है
कहीं तुम मेरी ज़िंदगी की वो किताब तो नहीं जो गुमनाम है सबसे
जिसके ऊपर मैने कोई अब तक टाइटल नहीं लिखा
हां बहुत सारी बातें लिखीं हैं दिल की, खुद की भावनाओं की
हर एक पन्ने में ढेर सारी बदमाशियां भी दर्ज कर दी हैं
हर पन्ने के हर्फ दर हर्फ में मैं सिर्फ तुमसे बातें करता हूं
ये होता चला जाता है बिना रुके ही, खुद से
जुड़ता जाता हूं वैसे जैसे किसी और से जुड़ा ही नहीं

मुझे जैसे किताबों से लगाव है वैसे ही तुमसे भी है
मैं उन किताबों को जैसे सहेजता हूं वैसे ही तुम्हें सहेज रहा हूं
ये वक्त भी बड़ा ज़ालिम है, तुम्हें जीभर कर पढ़ने का वक्त ही नहीं देता
पर मैं भी चुरा लाता हूं कुछ लम्हे जिनमें समंदर की जैसी खारी रेत तो है
पर लहरों को सुनने का आनंद भी भरपूर होता है.
इस किताब के हासिए पर मैने कई चित्र उकेर दिए हैं.
शब्दों से परे, इनके आकार बेढंगे से हैं जैसे हमारे रिश्ते का

कभी-कभी उन बेढंगे चित्रों में मुझे तुम नज़र आती हो तो कभी तुम्हारी बातें
अरे बातें बेढंगी नहीं हैं पर सब बेढंगा सा ही तो है.
तुम्हीं तो कहती हो ठहर जाओ कुछ वक्त, खुद को आराम तो दो
फिर चलना पूरी रफ्तार से... मैं भी ठहरने की कोशिश करता हूं तुम्हारे भीतर
एक किताब के जैसे, जैसे कभी कभी ओढ़ता हूं तुम्हारे शब्द
तुम्हें पता है ये मेरा सबसे फेवरेट काम है शब्दों से खेलना...
क्योंकि भावनाओं से तो ज़माना खेलता है, मुझे वो  पसंद नहीं
वो खेल दुख देता है सबको, और मुझे भी बहुत ज़्यादा
सुनोगी तो बताउंगा, अरे तुम सुनती तो हो मुझे हमेशा
मैं तो यूं ही भटक कर पूछने लगा, यही बात सबसे अच्छी है तुम्हारी
तुम सुनती हो मुझे लगातार मेरी किताबों के जैसी
उनका प्यार बेशुमार और तुम्हारा लाजवाब
आजकल हम बातें नहीं करते लम्बी लम्बी
क्योंकि हम ठहर गए हैं कुछ वक्त के लिए
मैं तुममें और तुम मुझमें तलाश रही हो कुछ
 हो सकता है ये वो ठहराव हो जिसकी तुम बातें करती हो
तुम्हें पता है मैं घंटों तुम्हारे और मेरे रिश्ते पर लिख सकता हूं
हाथ रुकने का नाम नहीं लेते, कीबोर्ड पर दौड़ती हैं उंगलियां
तुम सुनती हो मुझे लगातार मेरी किताबों के जैसी
अलग सा है ये, तुम्हें प्यार नहीं लगता, मुझे भी नहीं,
क्या ऐसा तो नहीं कि हमने प्यार की परिभाषा अलग पढ़ी हो
जिससे प्यार हो उसके साथ रहो हमेशा, बनाओ इंसानी ताल्लुकात
जिसमें जिस्म के रिश्ते हों एक दूसरे की नज़दीकी के हो

पर तुम ही बताओ क्या ये प्यार है
या वो जो दूर रहकर ही मन में रोमांच भर दे
सुकून पैदा कर दे कई दिनों तक एक-दूसरे को देखे बिना...
या ताउम्र ख्यालों में जिसके लिए गढ़ी जा सकें कविताएं
लिखे जा सकें शब्द, दिए जा सकें उसके कई नाम
जैसे मैं देता हूं उपमाएं, ये भी बड़ी ही बेढंगी सी हो जाती हैं
.. पर तुम सुनती हो ऐसे ही जैसे पहले दिन सुनना शुरू किया.
तुम्हें शिकवे नहीं मुझसे, और मुझे भी कोई शिकायत नहीं
ये सबसे खूबसूरत चीज़ है जो मुझे ले आती है हर रोज़ तुम्हारे करीब

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