मुस्कुराना फितरत है तेरी तो फिर से खिलखिला ज़रा

मुस्कुराना फितरत है तेरी तो फिर से खिलखिला ज़रा
मायूस मत हो, दौड़ जरा आंगन में, घर को महका ज़रा

बन्द दीवारों की दुनिया भी ये कोई दुनिया है भला
चेहरे पर सुर्खी भर, समंदर किनारे बाहें फैला ज़रा

मैने देखी है तेरे होंठों की वो बेबाक मासूम सी हंसी
बहक थोड़ा सुरमयी धूप में, दुनिया को भी बहका ज़रा

पत्तों पर भी सालों से जमी है कोई बेदर्द सी मायूसी
जादू कर कुछ हाथों से, उन्हें भी प्यार से सहला ज़रा

तू समझ उसे जो है तेरे भीतर छुपा हुआ कुछ प्यारा सा
शबनमी आंखों में खाबों को भर, थोड़ा शर्मा ज़रा।।






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