दबे पाओं आई अल्हड़ सुबह के जैसी.. गहरी नींद से जगा देती हो...
मैं नमाज में होता हूं और तुम हो कि कलमा भुला देती हो...
ख्वाबों की तरह खुद सोती नहीं, और मुझे सुला देती हो...
बाहों में लेती हो, और खुद सिर अपना मेरे सीने में छुपा देती हो...
कोई भला ऐसे भी रूठता है खुदसे...तुम हो कि धड़कन बढ़ा देती हो...
ख्याल कुछ ऐसा सीने में है... तुम बद्दुआ में भी दिल से दुआ देती हो....
खुदा का घर सयानों का है... कहकर मुझे राहों से बुला लेती हो....
वो गली.. वो नुक्कड़...तुम मुझे घर का पता भुला देती हो...
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