डियर,
ये क्या है? कैसा है और क्यूं है? ढेर सारे सवाल आते हैं मन में और छोड़ जाते हैं मीलों लंबी मुस्कान. झगड़ना तुम्हारी और मेरी फितरत में हैं और फिर हम मुस्कुराते हैं ढेर सारा. हमारा झगड़ा मुस्कुराहट को कई गुना लंबा कर जाता है. आज भी कुछ ऐसा ही हुआ, तुम नाराज़ हो गई, यूं ही जैसे हर रोज़ हो जाती हो और मैं फिर अपने काम में लग गया. मुझे ये याद भी नहीं रहा कि मुझे नाराज़ होना है. पर तुम्हें याद था हमारा झगड़ा.
किसी लड़के के लिए ये बयां करना आसान नहीं है. क्योंकि उसके साथ ऐसा कुछ होना सामान्य नहीं है. जैसे सामान्य नहीं है नदी का किनारे से आकर पूंछना क्या मेरे टकराने से तुम्हें चोट लगी. तुम ऑफिस चली गई कुछ उदास होकर, मुझे कुछ देर तक बुरा लगा और मैं भूल गया. मेरे जैसे लड़के ऐसे ही होते हैं पर लड़कियां तुम्हारी जैसी हों ये ज़रूरी नहीं.
घड़ी की सुइयों के हिसाब से ये शाम का वक्त था, तुम ऑफिस से लौट रही थीं. कुछ घंटें काम करने के बाद बिना कुछ खाए मैं नींद में चला गया. यही कुछ घंटे बीते होंगे कि दरवाज़े की घंटी बजी. मेरा मन भी नहीं हुआ उठकर दरवाज़ा खोलने का पर फिर से एक बार और घंटी बजी तो मैं उठ गया. एक लड़का खड़ा था सामने, उसने कहा सर आपके लिए कोरियर है. मैं हैरान था, थोड़ा नींद में भी था शायद.
उसने मेरे हाथ में एक कार्ड और बुके थमा दिया. अब मेरी नींद खुली थी शायद. फूलों को गौर से देखा और उस कार्ड को. उस पर दो शब्द लिखे थे, आई एम सॉरी और गुलाबों और चॉकलेट्स पर लिखा था ढेर सारा प्यार. तुम्हारा चेहरा घूम गया आंखों के सामने. मैने दरवाज़ा बंद किया. ये कुछ वैसा था जैसे बैकग्राउंड में किशोर कुछ रोमांटिक सा गुनगुना रहे हो. लेकिन मैने तो कोई गाना भी नहीं चलाया. उल्टे कदमों से बिस्तर की तरफ लौट आया. गुलाबों को देखा और मुस्कुराया, वैसे जैसे हमेशा मुस्कुराता हूं कुछ अच्छा होने पर.
बुके की एक तस्वीर खींची और कार्ड की. तुम्हें लिखे चंद शब्द... तुमसे तो मैं गुस्सा ही नहीं था. और बिना कहे कई इमोजी के सहारे अपनी खुशी तुम तक पहुंचा दी... पर मन नहीं माना तो फोन लगा लिया. मैं ऐसा कम करता हूं क्योंकि मैं तुमसे फोन पर ज़्यादा बातें नहीं करता जब तक कुछ ज़रूरी न हो. पर फिर अपने आप कॉल लॉग्स में जाकर लगा दिया तुम्हारा नंबर. कुछ खास नहीं कहा बस पूछा इतना पैसा क्यूं खर्च किया मैं तो नाराज़ ही नहीं था.
तुमने भी कहा कभी-कभी तो मन करता है ऐसा कुछ करने का. तुम शायद घर की तरफ तेज़ी से लौट रही थी तो फोन पर भी ज़्यादा देर मैने बात नहीं की. मुझे पता है ये महीने का आखिर है और सैलरी नहीं आई है.. इसके बावजूद तुमने कुछ भेजा उसकी अहमियत फोन पर नहीं बता सकता. तुम आओ गले लगाना है तुम्हें. कुछ खास नहीं बस ऐसे ही मन हो रहा है. सुनों थैंक्स ऐसे सॉरी के लिए... और हां एक बात और मैं तुमसे गुस्सा नहीं होता.......
Comments
Post a Comment