आसान होता है दबी बात जुबां पर ले आना
इश्क है ये, हर किसी का स्वीकार नहीं होता
आवारा हैं बादल, बरसते हैं और खो जाते हैं कहीं
मोड़ पर उनको किसी से प्यार नहीं होता
भूख है तो तड़प कर निकल ही आएगी कहीं
हर एक हिस्से में रोटी का इंतज़ार नहीं होता
रुठेंगे वो हमसे तो मना लेंगे हम रुठकर
हर वक्त प्रेमी इस बात का हक़दार नहीं होता
तुम सुनोंगे तो ही किस्सा सुनाएंगे इश्क का
हर कोई मेरे शब्दों का तलबगार नहीं होता
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