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वो बिछड़ के मुझसे उदास है

इश्क़ था उसे या कोई बहाना भर था, किसी गैर की बाहों में जाना भर था

तुम मेरा कोई अधूरा ख्वाब सा हो, सीने में दफन अधूरा राज़ सा हो

कांपते होठों से जो निकले सदा कोई तड़पती सी, लगे कुछ अनसुनी आवाज़ हवाएं मोड़ लायी है

तुम कहती हो मुस्कुराता रहूं यूं ही, चेहरा ही तो है तुम्हारे न होने पर उतर जाता है

जिसके लिए बिक जाए सल्तन वो कहर हूं मैं

दिल है या आईना तुम्हारा मुझे मेरा अख्श नज़र आता है

तू गली है वो जो हर पहर आबाद रहती है

रुठेंगे वो हमसे तो मना लेंगे हम रुठकर