कभी-कभी सोचता हूं कि मैं लिखता क्यूं हूं.
क्या मुझे तुमसे प्यार है...
क्या तुम्हारी भी देह है वैसी ही
जैसी किसी प्रेमिका की होती है....
उसमें भी तरंगे उठती हैं

क्या तुम्हारे पास भी वो मन है
जो किसी नायिका के पास होता है
सिर्फ और सिर्फ उसके नायक के लिए...
या मैं ऐसे ही ज़ाया कर देता हूं
अपने अल्फाज, जज़्बात तुम्हारे लिए.
सुनों न तुम मत कहो, मैं ही कहता हूं
मुझे बेपनाह मुहब्बत तुमसे
अरे सबसे ज़्यादा...उस मोड़ से भी ज़्यादा
जहां से अक्सर मुड़कर अपने घर जाता हूं
और वहां से भी ज़्यादा जहां अक्सर शामें बीती हैं
तुम भी बड़ी नीरस हो.. एक दम नीरस
कह दिया न... माना भी करो
जब तुम्हारे साथ होता हूं
तो किसी के साथ भी नहीं होता..
हवाएं भी नहीं छूतीं मुझे उस वक्त
मैं हो जाता हूं बावरा बादल....
आवारा सा...
तुम्हें खोजता हूं हर कहीं, हर नुक्कड़
किनारे, नदी, झरने, आकाश
कभी-कभी तो
क्लासरूम की यादों में
बारिश की बूंदों में सब जगह
ऐसा कोई पहर नहीं
जिसमें तुम्हारे होने से सुकून न हो...
तुम नहीं होती हो तो सब फीका हो जाता है
एकदम फीका जैसे
कड़क चाय में चीनी डालना ही भूल गया..
तुम्हें पता है पहली बार हम कब मिले...
शायद तुम भूल गई होगी...
पर मुझे याद है सब एक दम साफ-साफ

जब मैने तुम्हें महसूस किया
अपने भीतर... गहराईयों में...
अजीब सा रिश्ता बना लिया तुमने.
पता नहीं कैसे... तुम जुड़ गईं मुझसे...
ऐसे जैसे कभी न छूटने के लिए चुना हो..मुझे...
तुमने बांध दिया मेरे दिल को
उनकी धड़कनों को.. और बता दिया मुझे
कि तुम कितनी खूबसूरत हो..
इतनी की तुम्हें भूल ही नहीं पाता.... बिल्कुल नहीं...
पता है तुम्हारी मुहब्बत दिल से जाती ही नहीं..
बिल्कुल नहीं... कोशिश की...
महीनों छोड़ दिया तुम्हें..शायद सालों....

अमां यार ऐसी भी क्या मुहब्बत
कि दिल पर कब्ज़ा जमा लिया....
छोड़ना ही नहीं चाह रही मुझे..
अरे ब्रेकअप भी तो कुछ चीज़ होती है..
अजीब सा नशा भर दिया है तुमने
हां पहले इतनी मुहब्बत नहीं थी
पर हर रोज़ दूरियों के बावजूद
इश्क बढ़ा है...
पता है पहली मुलाकात रात के
आखिरी पहर में हुई थी
बड़ी मासूमियत से..
किसी पर तुम्हें तरस आ गया...
और तुमने दिल लगा लिया मुझसे..
अरे उसी से लगा लेतीं जिस पर आया था...
पर नहीं हरगिज नहीं
अब कितने दिनों तक तो बात भी नहीं करती

पर मैं तुम्हें खुद से दूर नहीं जाने दूंगा कभी
साथ दूंगा हमेशा, हर पहर, हर जगह
तुम्हें यकीन नहीं होता तो न सही...
पर जो कह दिया सो कह दिया...
मुझे परवाह है खुद की... तुम्हारी भी है..
पर खुद की ज़्यादा है...
तुम जिंदगी से बढ़कर हो...
मेरी सांसें तुमसे चलती हैं आजकल
नहीं लिखता तो मुस्कुराता नहीं...
इसलिए उतर ही आती हो किसी
न किसी चेहरे में... चलने लगती हो
सबसे तेज़...दौड़ने लगती हो सांसों में...
तुम ही तो हो जिससे ताउम्र का रिश्ता है...
मेरी प्यारी लेखनी.....
तुम्हीं से तो मुहब्बत है तब तक
आखिरी सांस है...दिल में जब तक
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