डियर लव,
दिल धड़क रहा है बहुत तेज, इतनी ज़ोर से जितनी ज़ोर से आज तक धड़का ही नहीं. ट्रेन की धड़धड़ाहट में जैसे कान सुन्न हो जाते हैं वैसे ही सब ब्लैंक हो गया है. आंखों के सामने तुम्हारी तस्वीर गुज़र रही है बार-बार. आंखें बंद करने पर भी और खोलने पर भी. बार-बार बिना प्ले लिस्ट के ही कानों में गाना सुनाई दे रहा है, तू किसी रेल से गुज़रती है और मैं किसी पुल सा थरथराता हूं. ट्रेन गुज़रती है तो तकलीफ पुल को ज़्यादा होती है, उस पर बोझ होता है ढेर सारा उसकी रफ्तार को थामने का. मेरे ऊपर भी है ढेर सारा बोझ, तुम्हें थामने का पर थाम नहीं पा रहा. न दिल को और न तुम्हें. हंसी नहीं आ रही चेहरे पर बनावटी भी नहीं, नाराज़ हो गई है मेरे चेहरे से बहुत देर पहले, लौटी नहीं अभी जैसे इसे तुम्हारा इंतज़ार हो. तुम्हारी हंसी का. तुम्हारे बिना मुस्कुराहट नहीं आती चेहरे पर.
रूठ जाना तो मुहब्बत की अलामत है मगर, क्या ख़बर थी मुझसे वो इतना ख़फा हो जाएगा. ये गज़ल बहुत सुनी है पर अब सुनने की हिम्मत नहीं हो रही, क्यों नहीं हो रही पता नहीं. वक्त के साथ इंसान की ज़रूरतें बदल जाती हैं, तुम्हारी भी बदल सकती हैं, इसमें नया क्या है, पर क्या ज़रूरतों के लिए सब बदलना ज़रूरी है समझ नहीं पा रहा, हो सकता है समझने की हिम्मत नहीं है या समझना ही नहीं चाहता. कुछ और समझा ही नहीं अब तक तुम्हारे अलावा, तुम्हारे चेहरे के भावों के अलावा.
बहुत देर से तुमसे दिमाग हटाने की कोशिश की सब नाकाम हो गया, चाय पीने की कोशिश की और फिर नहीं पी गई. खाना खाने की कोशिश की 4 कौर खाया और छोड़ दिया. डिनर भी 1 रोटी से ज्यादा अंदर नहीं गया. तुम्हें पता है मुझे जब भूख लगती है तो सब भूल जाता हूं. खाना नहीं मिलता तो सबसे ज़्यादा गुस्सा करता हूं. पर अब भूख नहीं लग रही, बिल्कुल नहीं. धीरे-धीरे सब बदल रहा है और मैं खुद में कुछ ढूंढ रहा हूं. शायद तुम्हें धड़कनों की रफ्तार में.
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