जिसके लिए बिक जाए सल्तन वो कहर हूं मैं

समंदर को छूता नीला आसमान है घर मेरा
डाल पर फुदकती चिड़ियां की चहक हूं मैं

धीमी आंच पर सुलगती चाय के जैसी
कुल्हड़ से उठती सौंधी सी महक हूं मैं

हमारी आवरू तुमसे है, ये कहते हैं सब
आवरू थामें खुद की निगाहों की कसक हूं मैं


मुझे थामना हर किसी के बस की बात नहीं
रात के बाद होने वाली खूबसूरत सी सहर हूं मैं

तुम्हें खिलौने ख़रीदने का शौक बहुत है
जिसके लिए बिक जाए सल्तन वो कहर हूं मैं

अभी बुने हैं मैने ख्वाब खनकती चूड़ियों के
पल में तोड़ दे जो सबके गुरूर वो दहर हूं मैं

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