तुम्हीं पूंछो ज़रा इनसे, ये किसकी शह पे आयी है
भरोसा उड़ न जाए भाप बन, बातें खामोश बैठी है
संभालो तो ज़रा इनकों ये सिसकी छोड़ आयी हैं
कांपते होठों से जो निकले सदा कोई तड़पती सी
लगे कुछ अनसुनी आवाज़ हवाएं मोड़ लायी है.
आग के दरिया से भी जो अक्सर जीत जाती है
वो कश्ती भर के तूफान को हमारे बीच लायी है
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