वक़्त चाहें कैसा भी हो आखिर गुज़र जाता है
कभी-कभी इंसान दिल से उतर जाता है
हमने बुना है एक ख्वाब अभी-अभी सुकूं का
धागा कुछ कच्चा है पल भर में उधड़ जाता है
तुम कहती हो मुस्कुराता रहूं हर पल यूं ही
चेहरा ही तो है तुम्हारे न होने पर उतर जाता है
रखेंगे ख्याल तुम्हारी छोटी सी ख्वाहिश का
वरना टूटा हुआ दिल अक्सर बिखर जाता है
मेरी कलम में स्याही भी कुछ स्याह सी है
मैं लिखूं खुशी भी तो गम उभर आता है
दिल फरेबी नहीं मेरा कुछ पागल सा है
राह बदल भी दूं फिर भी मुकर जाता है
समंदर को हथेली पर साधना मुश्किल है
तूफानों में अक्सर ये ज़्यादा बिगड़ जाता है
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