इश्क़ था उसे या कोई बहाना भर था
किसी गैर की बाहों में जाना भर था
आवाज़ चिड़ियों की हंसी होती है बहुत
उसे कुछ देर बैठ के गुनगुनाना भर था,
मैं डूबा था किसी फरेब में कई रोज़
उसे तो हंसी कुछ वक़्त बिताना भर था
याद आती है पूछती है अक्सर मुझसे
मैं भूला नहीं, उसे इश्क़ जताना भर था
दरिया में बहके उभर आना हंसी खेल नहीं
ग़मों की सौगात देकर, उसे मुस्कुराना भर था
चलो खैर हुई, टूटे, बिखरे और लौट आये
आग ऐसी थी घर का उजड़ जाना भर था
वो ईमान वाला है रोज़ पौधे में पानी देता है
हमें डर था, गुलाब का मेरे मुरझाना भर था
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