जादू-मंतर पढ़ा जो उसने, मैं कुछ यूं मदहोश हो गया

थोड़ी थी इतराई सी, थोड़ी सी कुम्लहाई सी

धूप सुनहरे आंगन में है, थोड़ी सी घबराई सी


रात अमावस में देखो, चेहरा खिल के चांद हो गया

रंग इश्क का ओढ़ा ऐसा, वो थोड़ी शरमाई सी


ख्वाब उतारा आंखों में, दरिया झट से पार हो गया

नदी उतर आई बाहों में, थोड़ी सी इठलाई सी 




देखी दुनिया उसने ऐसे, चिड़िया मेरी बाज हो गई

इश्क जताने मुझसे बैठी, भरी दोपहर परछाई सी 


जादू-मंतर पढ़ा जो उसने, मैं कुछ यूं मदहोश हो गया

नशा भरा था आंखों में उसके, खुश्बू भी बौराई सी

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