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इश्क़ था उसे या कोई बहाना भर था, किसी गैर की बाहों में जाना भर था

तुम लगी मुझे अपने जैसी

मुस्कुराना फितरत है तेरी तो फिर से खिलखिला ज़रा

तुम मेरा कोई अधूरा ख्वाब सा हो, सीने में दफन अधूरा राज़ सा हो

कांपते होठों से जो निकले सदा कोई तड़पती सी, लगे कुछ अनसुनी आवाज़ हवाएं मोड़ लायी है

तुम कहती हो मुस्कुराता रहूं यूं ही, चेहरा ही तो है तुम्हारे न होने पर उतर जाता है

देखकर ख्वाब कोई चेहरे पर हंसी उभर आई है, लगा कि जैसे आसमां की परी उतर आई है

ये सिर्फ तुम्हारे साथ होता है, हर किसी के साथ नहीं

तुम्हारे जाने से मन उदास सा है

जिनका हम रोजा थे उसने रखा ही नहीं

जिसके लिए बिक जाए सल्तन वो कहर हूं मैं