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मैं खुद में कुछ ढूंढ रहा हूं, शायद तुम्हें धड़कनों की रफ्तार में

क्या तुम्हारी भी देह वैसी ही है..जैसी किसी प्रेमिका की होती है..

तू गली है वो जो हर पहर आबाद रहती है

रुठेंगे वो हमसे तो मना लेंगे हम रुठकर

मेरे जैसे लड़के ऐसे ही होते हैं पर लड़कियां तुम्हारी जैसी हों ये ज़रूरी नहीं

जब तुम मुस्कुरा देती हो... ये मगरूर सारा जहां भुला देती हो...

दो प्याला चाय और किताबी इश्क

प्यार में बेमतलब की बातों के ज़्यादा मायने होते हैं

कलम चलती रहे उसी तरह, जैसे चलती हैं सांसें

अच्छा लगता है बीमार पड़ना... बीमारी में तुम्हारा करीब रहना

मैं हमेशा लिखता रहूं और तुम मेरी कहानियां पढ़ती रहो..

आसान नहीं है तुम्हें उदास देखना.. रुठना और रूठे रहना