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तुम्हारे जाने से मन उदास सा है

जिनका हम रोजा थे उसने रखा ही नहीं

जिसके लिए बिक जाए सल्तन वो कहर हूं मैं

दिल है या आईना तुम्हारा मुझे मेरा अख्श नज़र आता है

मेरे किस्सों में तुम हो...काफी अरसे से.

सुनों कुछ कहने का मन है वो नहीं जो हमेशा कहता हूं

तुम क्यों नहीं समझती टूटते इश्क की मजबूरी

मैं खुद में कुछ ढूंढ रहा हूं, शायद तुम्हें धड़कनों की रफ्तार में

क्या तुम्हारी भी देह वैसी ही है..जैसी किसी प्रेमिका की होती है..

तू गली है वो जो हर पहर आबाद रहती है

रुठेंगे वो हमसे तो मना लेंगे हम रुठकर

मेरे जैसे लड़के ऐसे ही होते हैं पर लड़कियां तुम्हारी जैसी हों ये ज़रूरी नहीं

जब तुम मुस्कुरा देती हो... ये मगरूर सारा जहां भुला देती हो...